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बयान सफ़ाई | शाही शायरी
bayan safai

नज़्म

बयान सफ़ाई

शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी

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रात उतरती गई
मुझ को ख़बर ही न थी

काग़ज़-ए-बे-रंग में सर्द-हवस-जंग में
सुब्ह से मसरूफ़ लोग अपनी चादर में बंद

आँख खटकती नहीं
दिल पे बरसती नहीं

ख़ुश्क-हँसी बे-नमक शहर फ़ज़ा में बुलंद
तंग-गली की हवा

शाम को चूहों की दौड़
तेज़-क़दम गुर्ब-ए-शाह जहाँ कब झपट लेगी किसे

क्या पता
नींद का ऊँचा मकाँ रौशनियों से सजा

हम सब की खिड़कियाँ दरवाज़े बंद हैं
घर की छतें आहनी

घर की हिफ़ाज़त करो घर की हिफ़ाज़त करो
रात उतरती रहे हम को दिखाई न दे

हम पे हवा इल्ज़ाम क्यूँ