बरस गुज़रे तुम्हें सोए हुए
उठ जाओ सुनती हो अब उठ जाओ
मैं आया हूँ
मैं अंदाज़े से समझा हूँ
यहाँ सोई हुई हो तुम
यहाँ रू-ए-ज़मीं के इस मक़ाम-ए-आसमानी-तर की हद में
बाद-हा-ए-तुंद ने
मेरे लिए बस एक अंदाज़ा ही छोड़ा है!
नज़्म
बस एक अंदाज़ा
जौन एलिया