बगूले
शोर करते हैं
मिरी ख़्वाहिश की दुनिया में
जहाँ वीरानियाँ हैं और
बहुत से बाँझ पेड़ों की क़तारें हैं
कि जिन की बे-करानी में
बहुत दिन हो गए
मौसम नहीं आए बहारों के
नहीं तो बुलबुलें चहकीं
नहीं तो फूल ही महके
मधुर आवाज़ कोयल की नहीं आई
बहुत दिन हो गए
कि हर-सू
गहरी वीरानी का कैसा दौर-दौरा है
मिरी ख़्वाहिश की दुनिया में
मगर फिर भी
बगूले शोर करते हैं

नज़्म
बगूले शोर करते हैं
आदिल हयात