ये सदा
ये सदा-ए-बाज़गश्त
बे-कराँ वुसअ'त की आवारा परी
सुस्त-रौ झीलों के पार
नम-ज़दा पेड़ों के फैले बाज़ुओं के आस-पास
एक ग़म-दीदा परिंद
गीत गाता है मिरी वीरान शामों के लिए
नज़्म
बाज़गश्त
मुनीर नियाज़ी
नज़्म
मुनीर नियाज़ी
ये सदा
ये सदा-ए-बाज़गश्त
बे-कराँ वुसअ'त की आवारा परी
सुस्त-रौ झीलों के पार
नम-ज़दा पेड़ों के फैले बाज़ुओं के आस-पास
एक ग़म-दीदा परिंद
गीत गाता है मिरी वीरान शामों के लिए