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ब'अद-अज़-वक़्त | शाही शायरी
baad-az-waqt

नज़्म

ब'अद-अज़-वक़्त

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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दिल को एहसास से दो-चार न कर देना था
साज़-ए-ख़्वाबीदा को बेदार न कर देना था

अपने मासूम तबस्सुम की फ़रावानी को
वुसअत-ए-दीद पे गुल-बार न कर देना था

शौक़-ए-मजबूर को बस एक झलक दिखला कर
वाक़िफ़-ए-लज़्ज़त-ए-तकरार न कर देना था

चश्म-ए-मुश्ताक़ की ख़ामोश तमन्नाओं को
यक-ब-यक माएल-ए-गुफ़्तार न कर देना था

जल्वा-ए-हुस्न को मस्तूर ही रहने देते
हसरत-ए-दिल को गुनहगार न कर देना था