अक़्लीमा
जो हाबील की क़ाबील की माँ-जाई है
माँ-जाई
मगर मुख़्तलिफ़
मुख़्तलिफ़ बीच में रानों के
और पिस्तानों के उभारों में
और अपने पेट के अंदर
अपनी कोख में
इन सब की क़िस्मत क्यूँ है
इक फ़र्बा भेड़ के बच्चे की क़ुर्बानी
वो अपने बदन की क़ैदी
तपती हुई धूप में जलते
टीले पर खड़ी हुई है
पत्थर पर नक़्श बनी है
उस नक़्श को ग़ौर से देखो
लम्बी रानों से ऊपर
उभरे पिस्तानों से ऊपर
पेचीदा कोख से ऊपर
अक़्लीमा का सर भी है
अल्लाह कभी अक़्लीमा से भी कलाम करे
और कुछ पूछे
नज़्म
अक़्लीमा
फ़हमीदा रियाज़