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अलामत के पस-मंज़र में | शाही शायरी
alamat ke pas-manzar mein

नज़्म

अलामत के पस-मंज़र में

मोहम्मद यूसुफ़ पापा

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बे-क़रार
फँस गई माज़ी के तह-ख़ाने में

मुस्तक़बिल की टाँग
नब्ज़-ए-दौराँ

नीम के साए तले बैठी रही
और फिर

क़ल्ब-ए-मुज़्तर में कुकुरमुत्ते उगे
चश्म-ए-फ़ितरत का

चुरा कर ले गया काजल कोई
कनखजूरे साँस से चिपके हुए

घूरते हैं मरमरीं इदराक को
खेत में लेटी है दीवाने की रूह

कूद जाओ आँसुओं की झील में
आज धुरपद गा रही है चाँदनी

इक सितारा दूसरे पर गिर पड़ा
फ़लसफ़ी के घर में तिलचिट्टे भटकते रह गए

घुस गया भुस आँख में आकाश की
नींद आँतों को

चबाती जाए है
फेफड़ों में फुज़ला-ए-एहसास है

महव-ए-ख़िराम
रौशनी को कोएले की कान से फ़ुर्सत कहाँ

दोस्तो आओ
लंगोटी बाँध लें