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अख़बार | शाही शायरी
aKHbar

नज़्म

अख़बार

गुलज़ार

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सारा दिन मैं ख़ून में लत-पत रहता हूँ
सारे दिन में सूख सूख के काला पड़ जाता है ख़ून

पपड़ी सी जम जाती है
खुरच खुरच के नाख़ूनों से

चमड़ी छिलने लगती है
नाक में ख़ून की कच्ची बू

और कपड़ों पर कुछ काले काले चकते से रह जाते हैं
रोज़ सुब्ह अख़बार मिरे घर

ख़ून में लत-पत आता है