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ऐ री चिड़िया | शाही शायरी
ai ri chiDiya

नज़्म

ऐ री चिड़िया

मजीद अमजद

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जाने इस रौज़न में बैठे बैठे
तू किस ध्यान में तैरी चिड़िया ऐ री चिड़िया

बैठे बैठे तू ने कितनी लाज से देखा
पीतल के उस इक तिल को जो तेरी नाक में है

अपनी पत पर यूँ मत रीझ ख़बर है बाहर
इक इक डाइन आँख की पुतली तेरी ताक में है

तुझ को यूँ चुमकारने वालों में है इक जुग तेरा बैरी
चिड़िया ऐ री चिड़िया

भूली तू यूँ उड़ती पँख झपकती
यहाँ कहाँ आ ठहरी चिड़िया ऐ री चिड़िया

ये तो मेरे दिल का पिंजरा है तू इस में
अपनी टूटी फूटी ख़ुशियाँ ढूँडने आई है

पगली यहाँ तो है हीरे की कनी का चोगा
और इक ज़ख़्मी साँस इस पिंजरे की अँगनाई है

उड़ और महकी हुई बन-बेलड़ियों में
जा चुन अपनी लय री चिड़िया ऐ री चिड़िया