ऐ अज़ल से ता-अबद साहिब-फ़रोग़
ऐ जमाल-ए-बे-हिजाब
ऊन कोहरे से
धूप से ज़र-बफ़त
और रेशम चाँदनी से
बार-हा लेने को मैं ने ले लिया
लफ़्ज़ सुर रंगों का पैराहन मगर
फिर भी न मुझ से सिल सका
तू तअय्युन की हदों में क्यूँ न मुझ को मिल सका
नज़्म
ऐ अज़ल से....
अमीक़ हनफ़ी