EN اردو
अगर ये ज़िंदगी तन्हा नहीं होती | शाही शायरी
agar ye zindagi tanha nahin hoti

नज़्म

अगर ये ज़िंदगी तन्हा नहीं होती

सय्यद काशिफ़ रज़ा

;

अगर ये ज़िंदगी तन्हा नहीं होती
तो इस को ख़ूब-सूरत फूल में तब्दील करने के लिए

कतरा न जा सकता
कभी इस से कोई काग़ज़ की कश्ती जोड़ कर

गहरे समुंदर की तरफ़ भेजी न जा सकती
सफ़र के दरमियाँ आई इक अन-जानी सराए में

ज़रा से दाम के बदले
इसे हारा न जा सकता

अगर ये ज़िंदगी तन्हा नहीं होती
तो इस को मुख़्तलिफ़ टुकड़ों के अंदर बाँट कर

हम अपनी मर्ज़ी के न उन में रंग भर सकते
बड़ी मिक़दार में इस को

न हम ईमेल कर सकते
अगर ये ज़िंदगी तन्हा नहीं होती

तो इस के ख़ूब-सूरत रंग
आवारा सी इक बारिश में धो डाले न जा सकते

अगर ये ज़िंदगी तन्हा नहीं होती
तो इस के फ़ालतू टुकड़े

मुंडेरों पर परिंदों के लिए फेंके न जा सकते