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ख़्वाब | शाही शायरी
KHwab

नज़्म

ख़्वाब

रश्मि भारद्वाज

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कितने ख़ूबसूरत होते हैं ना
और थोड़े सर-फिरे भी

ये चलना नहीं चाहते
बस उड़ना चाहते हैं

भरना चाहते हैं
एक ऐसी उड़ान

जहाँ ज़मीन की हक़ीक़त हो
और आसमाँ के पार की कल्पना भी

जहाँ वक़्त सा ठहरना हो
और ख़ुश्बू सा बिखरना भी

ये सजना चाहते हैं
सँवरना चाहते हैं

ख़ुद में भरते हैं रंग
ले कर तितलियों से उधार

चमक उठते हैं
ख़ुद को चाँदनी से सँवार

टाँकते हैं कुछ उजले सितारे भी
फिर ताकते हैं आएँगे दिन हमारे भी

देखते हैं हर नज़र में हज़ारों सवाल
कहते हैं ख़ुद से न डर तू सँभाल

दिन में सजते हैं शौक़ से
ख़्वाहिश के बाज़ारों में

रातों में बहते हैं ख़ौफ़ से
अश्कों के धारों में

बहुत ख़ुश-नसीब होती है वो आँखें
जिन में ख़्वाब रहते हैं

हैं मुकम्मल वो अश्क भी
जिन में ख़्वाब बहते हैं