बयाज़ चोरी हुई है जनाब-ए-'आली' की 
बयाज़-चोर ने चोरी बड़ी मिसाली की 
ज़रूर चोर कोई सारिक़-ए-अदब होगा 
उसे बयाज़ चुराने का ख़ास ढब होगा 
मैं ऐसे चोर की दानिश-वरी पे हूँ हैरान 
जो एक रात में बन बैठा साहब-ए-दीवान 
जनाब-ए-'आली' के कॉलम थे जितने मतबूआ 
समझ के छोड़ गया उन को नस्र-ए-ममनूअा 
अजीब चोर था नसरी कलाम छोड़ गया 
बयाज़ ले गया कॉलम तमाम छोड़ गया 
ग़ज़ल के साथ गई मसनवी भी दोहा भी 
तमाम शहर ने माना था जिस का लोहा भी 
छुपा हुआ था जो शाइ'र निकल रहा होगा 
वो इस बयाज़ के मक़्ते बदल रहा होगा 
जनाब-ए-'आली' की फ़िक्र-ए-जमील थी ये बयाज़ 
रुबाइयों में बड़ी ख़ुद-कफ़ील थी ये बयाज़ 
जिस अंजुमन में ये जाती थी हश्र करती थी 
अदब के साथ सियासत भी नश्र करती थी 
मुशायरों में ब-सद एहतिराम आती थी 
यही बयाज़ मुसीबत में काम आती थी 
इसी बयाज़ से दोहों को आज़माना था 
वो शाख़ ही न रही जिस पे आशियाना था
        नज़्म
'आली'-जी की गुम-शुदा बयाज़
खालिद इरफ़ान

