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आह गाँधी | शाही शायरी
aah gandhi

नज़्म

आह गाँधी

नज़ीर बनारसी

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तिरे मातम में शामिल हैं ज़मीन ओ आसमाँ वाले
अहिंसा के पुजारी सोग में हैं दो जहाँ वाले

तिरा अरमान पूरा होगा ऐ अम्न-ओ-अमाँ वाले
तिरे झंडे के नीचे आएँगे सारे जहाँ वाले

मिरे बूढ़े बहादुर इस बुढ़ापे में जवाँ-मर्दी
निशाँ गोली के सीने पर हैं गोली के निशाँ वाले

निशाँ हैं गोलियों के या खिले हैं फूल सीने पर
उसी को मार डाला जिस ने सर ऊँचा किया सब का

न क्यूँ ग़ैरत से सर नीचा करें हिन्दोस्ताँ वाले
मिरे गाँधी ज़मीं वालों ने तेरी क़द्र जब कम की

उठा कर ले गए तुझ को ज़मीं से आसमाँ वाले
ज़मीं पर जिन का मातम है फ़लक पर धूम है उन की

ज़रा सी देर में देखो कहाँ पहुँचे कहाँ वाले
पहुँचता धूम से मंज़िल पे अपना कारवाँ अब तक

अगर दुश्मन न होते कारवाँ के कारवाँ वाले
सुनेगा ऐ 'नज़ीर' अब कौन मज़लूमों की फ़रियादें

फ़ुग़ाँ ले कर कहाँ जाएँगे अब आह-ओ-फ़ुग़ाँ वाले