आदमी बुलबुला है पानी का
और पानी की बहती सतहा पर
टूटता भी है डूबता भी है
फिर उभरता है, फिर से बहता है
न समुंदर निगल सका इस को
न तवारीख़ तोड़ पाई है
वक़्त की हथेली पर बहता
आदमी बुलबुला है पानी का
नज़्म
आदमी बुलबुला है
गुलज़ार
नज़्म
गुलज़ार
आदमी बुलबुला है पानी का
और पानी की बहती सतहा पर
टूटता भी है डूबता भी है
फिर उभरता है, फिर से बहता है
न समुंदर निगल सका इस को
न तवारीख़ तोड़ पाई है
वक़्त की हथेली पर बहता
आदमी बुलबुला है पानी का