अभी फ़क़त तीन ही बजे हैं
अभी तो उस की रगों की कुछ और रौशनाई
तनी हुई मेज़ पर पड़े
फ़ाइलों के काग़ज़ में जज़्ब होगी
ज़रूरतें
उस के रेग-ज़ार-ए-हयात के
नन्हे नन्हे पौदों की आबियारी
किसी के नाज़ुक उदास होंटों पे
मुस्कुराहट की लाला-कारी
गुदाज़ बाँहों के नर्म हल्क़े में
गर्म साँसों की शब-गुज़ारी
ज़रूरतों का वो इक पुजारी
जो अपने सारे लहू के ग़ुंचे
मसाफ़त आफ़्ताब के
दस से पाँच तक के
क़बीह लम्हों के देवता के क़दम पे
क़ुर्बान कर रहा है
वो देवता
जिस ने साल-हा-साल की रियाज़त
और उस के इल्म-ओ-सलाहियत के गवाह
इन डिग्रियों के अल्फ़ाज़ को
जो इस से लिबास-ए-मफ़्हूम चाहते थे
बरहनगी दी
ज़रूरतें
इस की नन्हे पौदों
उदास होंटों
गुदाज़ बाँहों की रोज़ की हैं
ज़रूरतों का वो इक पुजारी
लहू के ग़ुंचों का ये चढ़ावा तो रोज़ का है
अभी फ़क़त तीन ही बजे हैं
नज़्म
क़बीह लम्हों का देवता
ज़हीर सिद्दीक़ी