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बच्चे और बदबू | शाही शायरी
bachche aur badbu

नज़्म

बच्चे और बदबू

ज़ुबैर रिज़वी

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बच्चों उस्तादों और सर-परस्तों ने
स्कूलों के सामने बरसों पुराने

बदबू भरे कूड़े-दानों को
हटाने का मुतालबा

छोड़ दिया है
अब बच्चों के नथनों से गुज़र कर

उन की साँसों का हिस्सा बन जाने वाली
बदबू

सरकारी भोजन के बा'द
मुफ़्त मिलने वाली बर्फ़ी बन गई है

किताबों को पढ़ते हुए
यही बदबू

चाकलेट की तरह
चूसी जाने लगी है

घंटी बजते ही
बच्चे

दिन भर सूँघी जाने वाली
बदबू

किताबों के बैग में ठूँस कर
अपने घरों के आस-पास वाले

कूड़े-दानों की हथेलियों पर
रख देते हैं

और रात की चादर तान कर
बदबू-भरे ख़्वाब देखने लगते हैं