रात-भर
उस ख़रीदे हुए जिस्म से
तुम हरारत निचोड़ो
प्यास हिर्स-ओ-हवस की बुझाओ
और जब सुब्ह के आईने में उभरता हुआ अक्स देखो तो मुँह मोड़ लो
कि ये तअ'ल्लुक़ तुम्हारे लिए बाइ'स-ए-नंग है
नज़्म
तअ'ल्लुक़
याक़ूब राही
नज़्म
याक़ूब राही
रात-भर
उस ख़रीदे हुए जिस्म से
तुम हरारत निचोड़ो
प्यास हिर्स-ओ-हवस की बुझाओ
और जब सुब्ह के आईने में उभरता हुआ अक्स देखो तो मुँह मोड़ लो
कि ये तअ'ल्लुक़ तुम्हारे लिए बाइ'स-ए-नंग है