देखो पर्दों को अच्छी तरह खींच दूर
और सब खिड़कियाँ बंद कर दो
और उस बंद कमरे से बाहर निकलो
उस में बोसीदा सोफ़ों पे इक मोटा कपड़ा चढ़ा कर
तुम ने उन को इस अंदाज़ से रख दिया है
कि अब दाएँ कोने में
उखड़ी सफ़ेदी पे सीलन के धब्बे
कम-ओ-बेश नज़रों से पोशीदा हैं
और बाएँ तरफ़
टूटे डिब्बों
पुराने ख़तों
ज़ंग-आलूद टूटी पलेटों
और बोसीदा पिंजरों के इक ढेर को
तुम ने इक लम्बी चौड़ी सी चादर से
अच्छी तरह ढक दिया है
और अब बाक़ी कमरा
बड़ा साफ़-सुथरा नज़र आ रहा है
देखो टूटी हुई कार्नस को भी
इक शोख़ कपड़े से ढक कर
उस पर वो ज़र-शमएँ जला दो
कि जिन की सिसकती हुई रौशनी में
तुम्हारे ख़द-ओ-ख़ाल मा'लूम होते हैं मौज़ूँ
और कोने में रखे हुए
छोटे रेकॉर्डप्लेयर पर हवा डिस्क रख दो
कि जिस में पुरानी सी एक लय में
बस चंद लफ़्ज़ों की तकरार है
देखो उस बंद कमरे से बाहर न निकलो
कभी भूल कर भी
बराबर के कमरे में हरगिज़ न जाओ
क्यूँ कि वो साल-हा-साल से बंद है
ये भी मुमकिन है
ज़हरीले कीड़े-मकोड़े वहाँ पल रहे हों
ये भी मुमकिन है
अब तक वो भूतों का घर बन चुका है
देखो उस बंद कमरे से बाहर न निकलो
क्यूँ कि मुमकिन है अब तक
वो ज़ख़्मी बरहना बंद
बाग़ के एक गोशे में दम तोड़ते हों
हाँ अगर हो सके तो किसी से कहो
उन के ख़ूँ-गश्ता जिस्मों पे
ज़रतार लफ़्ज़ों की पोशाक ढक कर
उन को बाहर पड़ी कुर्सियों पर बिठा दे
ता कि उस राह से कोई गुज़रे
तो कह दे कि सब ठीक है
तुम मगर फिर भी सब खिड़कियाँ बंद रखो
और पर्दों को अच्छी तरह खींच दो
और उस बंद कमरे से बाहर न निकलो
देखो उस बंद कमरे से बाहर न निकलो
नज़्म
बंद कमरा
ज़ाहिदा ज़ैदी