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ज़ो'म-ए-हस्ती मिरे इदराक से बाँधा गया है | शाही शायरी
zoam-e-hasti mere idrak se bandha gaya hai

ग़ज़ल

ज़ो'म-ए-हस्ती मिरे इदराक से बाँधा गया है

इरफ़ान वहीद

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ज़ो'म-ए-हस्ती मिरे इदराक से बाँधा गया है
और बदन तुर्रा-ए-पेचाक से बाँधा गया है

एक आँसू तिरी पोशाक से बाँधा गया है
या सितारा कोई अफ़्लाक से बाँधा गया है

इश्क़ को गेसू-ए-पेचाक से बाँधा गया है
और फिर गर्दिश-ए-अफ़्लाक से बाँधा गया है

ख़ाक उड़ाता हूँ मैं ता-उम्र निभाने के लिए
एक रिश्ता जो मिरा ख़ाक से बाँधा गया है

टूटे पड़ते हैं तमाशे को यहाँ पर नख़चीर
आज सय्याद को फ़ितराक से बाँधा गया है

किश्त-ए-वहशत हो जिसे देखनी आए देखे
हर बगूला ख़स-ओ-ख़ाशाक से बाँधा गया है

फिर वही हर्फ़-ए-तमन्ना है वही साअत-ए-दर्द
फिर हमें दीदा-ए-नमनाक से बाँधा गया है

अब किसी कूज़ा-गरी की नहीं हाजत कि मुझे
ता फ़ना एक इसी चाक से बाँधा गया है

हम गुनहगारों की है आख़िरी उम्मीद वही
अहद इक जो शह-ए-लौलाक से बाँधा गया है

कुजा ये शोख़-अदा दुनिया कुजा मैं 'इरफ़ान'
मर्द-ए-सादा ज़न-ए-बेबाक से बाँधा गया है