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ज़िंदगी सिलसिला-ए-वहम-ओ-गुमाँ है यारो | शाही शायरी
zindagi silsila-e-wahm-o-guman hai yaro

ग़ज़ल

ज़िंदगी सिलसिला-ए-वहम-ओ-गुमाँ है यारो

मजीद लाहौरी

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ज़िंदगी सिलसिला-ए-वहम-ओ-गुमाँ है यारो
दिल-ए-बेताब को तस्कीन कहाँ है यारो

वही सय्याद की घातें हैं वही कुंज-ए-क़फ़स
फ़स्ल-ए-गुल रेहन-ए-ग़म-ए-जौर-ए-ख़िज़ाँ है यारो

वही अफ़्कार की उलझन वही माहौल का जब्र
ज़ेहन पा-बस्ता-ए-ज़ंजीर-ए-गिराँ है यारो

वही हसरत वही लब और वही मोहर-ए-सुकूत
शौक़ को जुरअत-ए-इज़हार कहाँ है यारो

अज़्म की रह भी वही राह में काँटे भी वही
दूर कोसों मरी मंज़िल का निशाँ है यारो

बेवफ़ाई का ख़ुदारा मुझे इल्ज़ाम न दो
तुम पे हाल-ए-दिल-ए-बेताब अयाँ है यारो

काश मैं कह भी सकूँ काश कोई सुन भी सके
आह वो राज़ कि जो राज़-ए-निहाँ है यारो

मेरे होंटों पे है इक नग़्मा-ए-बे-सौत-ओ-सदा
दिल में इक महशर-ए-फ़रियाद-ओ-फ़ुग़ाँ है यारो

इक तग़ाफ़ुल कि जो है वज्ह-ए-परेशानी-ए-दिल
एक याद इन की है जो राहत-ए-जाँ है यारो

आज साहिल के क़रीं डूबने वाला है 'मजीद'
नाख़ुदा को तो पुकारो वो कहाँ है यारो