ज़िंदगी सिलसिला-ए-वहम-ओ-गुमाँ है यारो
दिल-ए-बेताब को तस्कीन कहाँ है यारो
वही सय्याद की घातें हैं वही कुंज-ए-क़फ़स
फ़स्ल-ए-गुल रेहन-ए-ग़म-ए-जौर-ए-ख़िज़ाँ है यारो
वही अफ़्कार की उलझन वही माहौल का जब्र
ज़ेहन पा-बस्ता-ए-ज़ंजीर-ए-गिराँ है यारो
वही हसरत वही लब और वही मोहर-ए-सुकूत
शौक़ को जुरअत-ए-इज़हार कहाँ है यारो
अज़्म की रह भी वही राह में काँटे भी वही
दूर कोसों मरी मंज़िल का निशाँ है यारो
बेवफ़ाई का ख़ुदारा मुझे इल्ज़ाम न दो
तुम पे हाल-ए-दिल-ए-बेताब अयाँ है यारो
काश मैं कह भी सकूँ काश कोई सुन भी सके
आह वो राज़ कि जो राज़-ए-निहाँ है यारो
मेरे होंटों पे है इक नग़्मा-ए-बे-सौत-ओ-सदा
दिल में इक महशर-ए-फ़रियाद-ओ-फ़ुग़ाँ है यारो
इक तग़ाफ़ुल कि जो है वज्ह-ए-परेशानी-ए-दिल
एक याद इन की है जो राहत-ए-जाँ है यारो
आज साहिल के क़रीं डूबने वाला है 'मजीद'
नाख़ुदा को तो पुकारो वो कहाँ है यारो

ग़ज़ल
ज़िंदगी सिलसिला-ए-वहम-ओ-गुमाँ है यारो
मजीद लाहौरी