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ज़िंदगी से मिरी इस तरह मुलाक़ात हुई | शाही शायरी
zindagi se meri is tarah mulaqat hui

ग़ज़ल

ज़िंदगी से मिरी इस तरह मुलाक़ात हुई

अलक़मा शिबली

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ज़िंदगी से मिरी इस तरह मुलाक़ात हुई
लब हिले आँख मिली और न कोई बात हुई

दर्द की धूप नहीं याद का साया भी नहीं
अब तो क़िस्मत मेरी बे-रंगी-ए-हालात हुई

सिर्फ़ कल ही नहीं इस दौर में भी दीदा-वरी
नज़्र-ए-औहाम हुई सैद-ए-रिवायात हुई

कल तो मेहवर थे मिरी ज़ात के ये कौन-ओ-मकाँ
काएनात आज जो सिमटी तो मिरी ज़ात हुई

सर को फोड़ा किए पत्थर से समुंदर से लड़े
सुब्ह यूँ शाम हुई शाम से यूँ रात हुई

घर मिरा देख लिया सैल-ए-बला ने 'शिबली'
आगही क्या हुई इक दर्द की सौग़ात हुई