ज़िंदगी सादा वरक़ पर इक हसीं तहरीर है
और ये दुनिया उसी तहरीर की तफ़्सीर है
हक़-ब-जानिब सिर्फ़ हम हैं दूसरा कोई नहीं
ख़ुद-पसंदी की यही अदना सी इक तस्वीर है
ये भी अंदाज़-ए-तग़ाफ़ुल और तलव्वुन की दलील
जो बहुत प्यारा था अब वो लाएक़-ए-ताज़ीर है
राहबर मिलते हैं लेकिन राह दिखलाते नहीं
मंज़िलों पर जो पहुँच जाए वही रह-गीर है
ज़ूद-रंजी भी 'वासिय्या' एक आदत ही सही
ये तो बतला दें कि इस में क्या मिरी तक़्सीर है

ग़ज़ल
ज़िंदगी सादा वरक़ पर इक हसीं तहरीर है
फ़ातिमा वसीया जायसी