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ज़िंदगी में उस को कैफ़-ए-ज़िंदगी हासिल नहीं | शाही शायरी
zindagi mein usko kaif-e-zindagi hasil nahin

ग़ज़ल

ज़िंदगी में उस को कैफ़-ए-ज़िंदगी हासिल नहीं

एहसान दानिश

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ज़िंदगी में उस को कैफ़-ए-ज़िंदगी हासिल नहीं
जिस का दिल राज़-ओ-नियाज़-ए-इश्क़ के क़ाबिल नहीं

हुस्न के पर्दे में हो सकता नहीं हरगिज़ क़रार
रोज़-ए-अव्वल से ये लैला ख़ूगर-ए-महमिल नहीं

क़द्र कर दिल की कि दरगाह-ए-ख़ुदा में ऐ नदीम
दो-जहाँ की ने'मतें हाज़िर हैं लेकिन दिल नहीं

होशियार ऐ मस्त-ओ-मदहोश-ए-जवानी होशियार
इश्क़ वो दरिया है जो मिन्नत-कश-ए-साहिल नहीं

ज़ब्त-ए-नाला ज़ब्त-ए-गिर्या ज़ब्त-ए-उल्फ़त ज़ब्त-ए-शौक़
किस तरह कह दूँ कि ये आसानियाँ मुश्किल नहीं

अपना रस्ता अपनी धुन अपना तसव्वुर अपना शौक़
कोई भी रहबरो यहाँ बेगाना-ए-मंज़िल नहीं

है तसव्वुर इशरत-ए-माज़ी का आईना-ब-दस्त
दिल वही दिल है मगर वो गर्मी-ए-महफ़िल नहीं

देर क्या है आ मिरे दिल में समा जा बर्क़-ए-नाज़
शिकवा-संजी फ़ितरत-ए-एहसान में दाख़िल नहीं

इल्तिमास-ए-शौक़ पर 'एहसान' महशर ढह गया
उन का शरमा कर ये कहना मैं तिरे क़ाबिल नहीं