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ज़िंदगी में ख़ुशी नहीं आई | शाही शायरी
zindagi mein KHushi nahin aai

ग़ज़ल

ज़िंदगी में ख़ुशी नहीं आई

आयुष चराग़

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ज़िंदगी में ख़ुशी नहीं आई
ये सबा इस गली नहीं आई

आप को नज़्म कर नहीं पाया
हाँ मुझे शाइ'री नहीं आई

बात कहने का ढंग सोच लिया
बात कहनी कभी नहीं आई

बस को रोके हुए थे दोस्त मिरे
और वो बावरी नहीं आई

लोग सदियों के दर्द काट गए
पर शब-ए-आख़िरी नहीं आई

होश में घूमते हो सड़कों पर
तुम को आवारगी नहीं आई

एक मरहूम की तरह वापस
उम्र गुज़री हुई नहीं आई

चोट आवाज़ से लगी और फिर
होश में ख़ामुशी नहीं आई