ज़िंदगी कितना आज़माएगी
आख़िरश वो भी हार जाएगी
किस क़दर प्यास है समुंदर को
मेरी तिश्ना-लबी बताएगी
क्या ख़बर थी शब-ए-फ़िराक़ के बा'द
ज़िंदगी ख़ुद भी रूठ जाएगी
क्या हुआ लब को सी दिया भी अगर
ख़ामुशी दास्ताँ सुनाएगी
मैं उसे कैसे भूल पाऊँगा
वो मुझे कैसे भूल पाएगी
बा'द तर्क-ए-तअल्लुक़ात 'सबा'
और भी उस की याद आएगी

ग़ज़ल
ज़िंदगी कितना आज़माएगी
कामरान ग़नी सबा