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ज़िंदगी की हँसी उड़ाती हुई | शाही शायरी
zindagi ki hansi uDati hui

ग़ज़ल

ज़िंदगी की हँसी उड़ाती हुई

विकास शर्मा राज़

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ज़िंदगी की हँसी उड़ाती हुई
ख़्वाहिश-ए-मर्ग सर उठाती हुई

खो गई रेत के समुंदर में
इक नदी रास्ता बनाती हुई

मुझ को अक्सर उदास करती है
एक तस्वीर मुस्कुराती हुई

आ गई ख़ामुशी के नर्ग़े में
ज़िंदगी मुझ को गुनगुनाती हुई

मैं इसे भी उदास कर दूँगा
सुब्ह आई है खिलखिलाती हुई

हर अँधेरा तमाम होता हुआ
जोत में जोत अब समाती हुई