EN اردو
ज़िंदगी कैसे लगी दीवार से | शाही शायरी
zindagi kaise lagi diwar se

ग़ज़ल

ज़िंदगी कैसे लगी दीवार से

अज़हर अब्बास

;

ज़िंदगी कैसे लगी दीवार से
पूछना भी क्या किसी दीवार से

बस मुझे सर फोड़ने का शौक़ था
बात थी दीवार की दीवार से

टूटते दिल की कहानी भी कही
या'नी फिर टूटी हुई दीवार से

आओ हम दीवार-ए-गिर्या का पता
पूछ लेते हैं किसी दीवार से

जो रुकावट थी हमारी राह की
रास्ता निकला उसी दीवार से

दस्तकों से दर थे ऐसे बे-नियाज़
लग गईं आँखें मिरी दीवार से

इस तरफ़ सूरज निकल आया है क्या
आ रही है रौशनी दीवार से