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ज़िंदगी जब्र है और जब्र के आसार नहीं | शाही शायरी
zindagi jabr hai aur jabr ke aasar nahin

ग़ज़ल

ज़िंदगी जब्र है और जब्र के आसार नहीं

फ़ानी बदायुनी

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ज़िंदगी जब्र है और जब्र के आसार नहीं
हाए इस क़ैद को ज़ंजीर भी दरकार नहीं

बे-अदब गिर्या-ए-महरूमी-ए-दीदार नहीं
वर्ना कुछ दर के सिवा हासिल-ए-दीवार नहीं

आसमाँ भी तिरे कूचे की ज़मीं है लेकिन
वो ज़मीं जिस पे तिरा साया-ए-दीवार नहीं

हाए दुनिया वो तिरी सुरमा-तक़ाज़ा आँखें
क्या मिरी ख़ाक का ज़र्रा कोई बेकार नहीं