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ज़िंदगी हँसती है सुब्ह-ओ-शाम तेरे शहर में | शाही शायरी
zindagi hansti hai subh-o-sham tere shahr mein

ग़ज़ल

ज़िंदगी हँसती है सुब्ह-ओ-शाम तेरे शहर में

शमीम फ़तेहपुरी

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ज़िंदगी हँसती है सुब्ह-ओ-शाम तेरे शहर में
आम है दौर-ए-मय-ए-गुल-फ़ाम तेरे शहर में

किस क़दर मशहूर हैं वो लोग जो हैं बुल-हवस
और इक हम हैं कि हैं बदनाम तेरे शहर में

कोई सौदाई कोई कहता है दीवाना मुझे
रोज़ मिलता है नया इक नाम तेरे शहर में

हम जुनून-ए-इश्क़ के बा-वस्फ़ भी होश्यार हैं
सुब्ह तेरे शहर में हैं शाम तेरे शहर में

ज़िंदगी मुझ को मिले या मौत का हो सामना
जो भी होना है वो हो अंजाम तेरे शहर में

कार-फ़रमा तेरी नज़रें हुक्मराँ तेरा जमाल
काँपती है गर्दिश-ए-अय्याम तेरे शहर में

हर तरफ़ ऐश-ओ-मसर्रत हर तरफ़ मौज-ए-'शमीम'
लुत्फ़-सामाँ ज़िंदगी है आम तेरे शहर में