ज़िंदगी दर्द भी दवा भी थी
हम-सफ़र भी गुरेज़-पा भी थी
कुछ तो थे दोस्त भी वफ़ा-दुश्मन
कुछ मिरी आँख में हया भी थी
दिन का अपना भी शोर था लेकिन
शब की आवाज़ बे-सदा भी थी
इश्क़ ने हम को ग़ैब-दान किया
यही तोहफ़ा यही सज़ा भी थी
गर्द-बाद-ए-वफ़ा से पहले तक
सर पे ख़ेमा भी था रिदा भी थी
माँ की आँखें चराग़ थीं जिस में
मेरे हम-राह वो दुआ भी थी
कुछ तो थी रहगुज़र में शम्-ए-तलब
और कुछ तेज़ वो हवा भी थी
बेवफ़ा तो वो ख़ैर था 'अमजद'
लेकिन उस में कहीं वफ़ा भी थी
ग़ज़ल
ज़िंदगी दर्द भी दवा भी थी
अमजद इस्लाम अमजद