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ज़िंदगी दर्द भी दवा भी थी | शाही शायरी
zindagi dard bhi dawa bhi thi

ग़ज़ल

ज़िंदगी दर्द भी दवा भी थी

अमजद इस्लाम अमजद

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ज़िंदगी दर्द भी दवा भी थी
हम-सफ़र भी गुरेज़-पा भी थी

कुछ तो थे दोस्त भी वफ़ा-दुश्मन
कुछ मिरी आँख में हया भी थी

दिन का अपना भी शोर था लेकिन
शब की आवाज़ बे-सदा भी थी

इश्क़ ने हम को ग़ैब-दान किया
यही तोहफ़ा यही सज़ा भी थी

गर्द-बाद-ए-वफ़ा से पहले तक
सर पे ख़ेमा भी था रिदा भी थी

माँ की आँखें चराग़ थीं जिस में
मेरे हम-राह वो दुआ भी थी

कुछ तो थी रहगुज़र में शम्-ए-तलब
और कुछ तेज़ वो हवा भी थी

बेवफ़ा तो वो ख़ैर था 'अमजद'
लेकिन उस में कहीं वफ़ा भी थी