ज़िंदगी चैन पा नहीं सकती
मौत को मौत आ नहीं सकती
फूँक सकती है बर्क़ गुलशन को
फूल इस में खिला नहीं सकती
तोड़ देती है मौत साज़-ए-हयात
लेकिन इस को बजा नहीं सकती
तुम न चाहो तो ये नसीम-ए-बहार
गुल चमन में खिला नहीं सकती
ज़िंदगी लाख ताबदार सही
मौत की ताब ला नहीं सकती
हम पे हँसना तो उस को आता है
हम को दुनिया हँसा नहीं सकती
हम से इंसाँ कहाँ मिलेंगे उसे
हम को दुनिया भुला नहीं सकती
ग़ज़ल
ज़िंदगी चैन पा नहीं सकती
जैमिनी सरशार