ज़िंदगी भर मैं सरगिरानी से
ऐसे खेला हूँ जैसे पानी से
कितने ही ग़म निखरने लगते हैं
एक लम्हे की शादमानी से
हर कहानी मिरी कहानी थी
जी न बहला किसी कहानी से
सिर्फ़ वक़्ती सुकून मिलता है
प्यास बुझती नहीं है पानी से
मुझ को क्या क्या न दुख मिले 'साक़ी'
मेरे अपनों की मेहरबानी से
ग़ज़ल
ज़िंदगी भर मैं सरगिरानी से
साक़ी अमरोहवी