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ज़िंदगी भर मैं सरगिरानी से | शाही शायरी
zindagi bhar main sargirani se

ग़ज़ल

ज़िंदगी भर मैं सरगिरानी से

साक़ी अमरोहवी

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ज़िंदगी भर मैं सरगिरानी से
ऐसे खेला हूँ जैसे पानी से

कितने ही ग़म निखरने लगते हैं
एक लम्हे की शादमानी से

हर कहानी मिरी कहानी थी
जी न बहला किसी कहानी से

सिर्फ़ वक़्ती सुकून मिलता है
प्यास बुझती नहीं है पानी से

मुझ को क्या क्या न दुख मिले 'साक़ी'
मेरे अपनों की मेहरबानी से