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ज़िंदगी बे-क़रार कौन करे | शाही शायरी
zindagi be-qarar kaun kare

ग़ज़ल

ज़िंदगी बे-क़रार कौन करे

अमित अहद

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ज़िंदगी बे-क़रार कौन करे
ख़्वाहिशें बे-शुमार कौन करे

छोड़ कर काम ये मोहब्बत का
ख़ुद को बे-रोज़गार कौन करे

जब वफ़ा ही नहीं ज़माने में
इश्क़ सर पर सवार कौन करे

मौत आई है ज़ीस्त को लेने
मौत से अब उधार कौन करे

हाल जब पूछता नहीं कोई
दर्द को इश्तिहार कौन करे

तीरगी में अदब की दुनिया है
अब ये रौशन दयार कौन करे

ख़ार ही ख़ार हैं 'अहद' जिस पर
राह वो इख़्तियार कौन करे