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ज़िंदगानी जावेदानी भी नहीं | शाही शायरी
zindagani jawedani bhi nahin

ग़ज़ल

ज़िंदगानी जावेदानी भी नहीं

अमजद इस्लाम अमजद

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ज़िंदगानी जावेदानी भी नहीं
लेकिन इस का कोई सानी भी नहीं

है सवा-नेज़े पे सूरज का अलम
तेरे ग़म की साएबानी भी नहीं

मंज़िलें ही मंज़िलें हैं हर तरफ़
रास्ते की इक निशानी भी नहीं

आइने की आँख में अब के बरस
कोई अक्स-ए-मेहरबानी भी नहीं

आँख भी अपनी सराब-आलूद है
और इस दरिया में पानी भी नहीं

जुज़ तहय्युर गर्द-बाद-ए-ज़ीस्त में
कोई मंज़र ग़ैर-फ़ानी भी नहीं

दर्द को दिलकश बनाएँ किस तरह
दास्तान-ए-ग़म कहानी भी नहीं

यूँ लुटा है गुलशन-ए-वहम-ओ-गुमाँ
कोई ख़ार-ए-बद-गुमानी भी नहीं