ज़िंदाबाद ऐ दश्त के मंज़र ज़िंदाबाद
शहर में है जलता हुआ हर घर ज़िंदाबाद
कितने नौ-उम्रों के क़िस्से पाक किए
कर्फ़्यू में चलता हुआ ख़ंजर ज़िंदाबाद
तेरे मेरे रिश्तों के संगीन गवाह
टूटी मस्जिद जलता मंदर ज़िंदाबाद
आग लगी है मन के बाहर क्या कहिए
फूल खिले हैं मन के अंदर ज़िंदाबाद
दिल पर इक घनघोर घटा सी छाई है
आँखों में फिरता है समुंदर ज़िंदाबाद
ग़ज़ल
ज़िंदाबाद ऐ दश्त के मंज़र ज़िंदाबाद
उनवान चिश्ती