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ज़िक्र-ए-बहार भी रहा ज़िक्र-ए-ख़िज़ाँ के साथ | शाही शायरी
zikr-e-bahaar bhi raha zikr-e-KHizan ke sath

ग़ज़ल

ज़िक्र-ए-बहार भी रहा ज़िक्र-ए-ख़िज़ाँ के साथ

शारिब लखनवी

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ज़िक्र-ए-बहार भी रहा ज़िक्र-ए-ख़िज़ाँ के साथ
तेरी भी दास्ताँ है मिरी दास्ताँ के साथ

उन का भी कुछ ख़याल रहे अहल-ए-कारवाँ
जो आ रहे हैं गर्द-ए-रह-ए-कारवाँ के साथ

उस वक़्त रंग लाएगा अफ़साना-ए-वफ़ा
दिल का लहू जब आएगा अश्क-ए-रवाँ के साथ

हर चीज़ अजनबी सी है हर शख़्स ग़ैर है
दुनिया बदल गई निगह-ए-मेहरबाँ के साथ

'शारिब' ये जानता हूँ कि दुनिया है बेवफ़ा
चलना पड़ेगा फिर भी इसी कारवाँ के साथ