ज़िक्र-ए-बहार भी रहा ज़िक्र-ए-ख़िज़ाँ के साथ
तेरी भी दास्ताँ है मिरी दास्ताँ के साथ
उन का भी कुछ ख़याल रहे अहल-ए-कारवाँ
जो आ रहे हैं गर्द-ए-रह-ए-कारवाँ के साथ
उस वक़्त रंग लाएगा अफ़साना-ए-वफ़ा
दिल का लहू जब आएगा अश्क-ए-रवाँ के साथ
हर चीज़ अजनबी सी है हर शख़्स ग़ैर है
दुनिया बदल गई निगह-ए-मेहरबाँ के साथ
'शारिब' ये जानता हूँ कि दुनिया है बेवफ़ा
चलना पड़ेगा फिर भी इसी कारवाँ के साथ

ग़ज़ल
ज़िक्र-ए-बहार भी रहा ज़िक्र-ए-ख़िज़ाँ के साथ
शारिब लखनवी