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ज़र्रों की बातों में आने वाला था | शाही शायरी
zarron ki baaton mein aane wala tha

ग़ज़ल

ज़र्रों की बातों में आने वाला था

विकास शर्मा राज़

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ज़र्रों की बातों में आने वाला था
मैं सहरा से रब्त बढ़ाने वाला था

बारिश उम्मीदों पर पानी फेर गई
मैं रिश्तों को धूप लगाने वाला था

फिर याद आया दूर बहुत ही दूर हो तुम
मैं पागल आवाज़ लगाने वाला था

जाने कैसे रात अमावस की उतरी
मैं काग़ज़ पर चाँद बनाने वाला था

एक किरन फिर मुझ को वापस खींच गई
मैं बस जिस्म से बाहर आने वाला था

उस से बिछड़ने की तारीख़ तो याद नहीं
हाँ जाड़ों का मौसम आने वाला था

ठीक समय पर ही मुझ को इरफ़ान हुआ
मैं घर छोड़ के बन में जाने वाला था