ज़रगर-ओ-हद्दाद ख़ुश हों वो करें तदबीर हम
तौक़-ए-ज़र तुम पहनो पहनें आहनी ज़ंजीर हम
और दीवानों से रखते हैं ज़रा तौक़ीर हम
डालते हैं आप अपने पाँव में ज़ंजीर हम
कुफ़्र-ओ-दीं के क़ाएदे दोनों अदा हो जाएँगे
ज़ब्ह वो काफ़िर करे मुँह से कहें तकबीर हम
यूँ ही ख़ुश करते हैं दिल अपना उमीद-ए-वस्ल में
खींचते हैं एक जा अपनी तिरी तस्वीर हम
आ गया जिस दिन ख़याल-ए-जोशिश-ए-दीवानगी
चाक कर डालेंगे अपना नामा-ए-तक़दीर हम
सुन तो ओ ज़ालिम भला ये भी कोई इंसाफ़ है
लाएक़-ए-अल्ताफ़ आदा क़ाबिल-ए-ताज़ीर हम
वस्ल मेरे उन के होगा कुछ अब इस में शक नहीं
कह दो आमीं दे चुके इस ख़्वाब की ता'बीर हम
रोज़ का झगड़ा उठाए कौन कर लेते हैं आज
इम्तिहान-ए-काविश-ए-क़ातिल तह-ए-शमशीर हम
क्यूँ न मुस्तग़नी रहें फ़ज़्ल-ए-ख़ुदा से ऐ 'नसीम'
रखते हैं मुल्क-ए-सुख़न की वाक़ई जागीर हम
ग़ज़ल
ज़रगर-ओ-हद्दाद ख़ुश हों वो करें तदबीर हम
नसीम देहलवी