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ज़रा देखना ख़ाकसारी हमारी | शाही शायरी
zara dekhna KHaksari hamari

ग़ज़ल

ज़रा देखना ख़ाकसारी हमारी

शाद लखनवी

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ज़रा देखना ख़ाकसारी हमारी
मिली ख़ाक में ख़ाक सारी हमारी

उसे हश्र में ऐ ख़िज़र देख लेंगे
अगर ज़िंदगी है तुम्हारी हमारी

ये कहते हैं मिज़्गान-ए-तर को दिखा कर
बुझी ज़हर में है कटारी हमारी

वबाल-ए-जहाँ हैं ये आलम के ऊपर
मरे पर भी है लाश भारी हमारी

हमें तुम हो रूह-ए-रवाँ से ज़ियादा
तुम्हें कुछ नहीं जान प्यारी हमारी

बहम रह सकें किस तरह आग पानी
निभे दोस्ती क्या तुम्हारी हमारी

मरे पर भी ऐ 'शाद' तक़दीर बिगड़ी
किसी ने न उक़्बा सँवारी हमारी