ज़रा देखना ख़ाकसारी हमारी
मिली ख़ाक में ख़ाक सारी हमारी
उसे हश्र में ऐ ख़िज़र देख लेंगे
अगर ज़िंदगी है तुम्हारी हमारी
ये कहते हैं मिज़्गान-ए-तर को दिखा कर
बुझी ज़हर में है कटारी हमारी
वबाल-ए-जहाँ हैं ये आलम के ऊपर
मरे पर भी है लाश भारी हमारी
हमें तुम हो रूह-ए-रवाँ से ज़ियादा
तुम्हें कुछ नहीं जान प्यारी हमारी
बहम रह सकें किस तरह आग पानी
निभे दोस्ती क्या तुम्हारी हमारी
मरे पर भी ऐ 'शाद' तक़दीर बिगड़ी
किसी ने न उक़्बा सँवारी हमारी
ग़ज़ल
ज़रा देखना ख़ाकसारी हमारी
शाद लखनवी