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ज़मज़मा-ए-आह-ओ-फ़ुग़ाँ दूर तक | शाही शायरी
zamzama-e-ah-o-fughan dur tak

ग़ज़ल

ज़मज़मा-ए-आह-ओ-फ़ुग़ाँ दूर तक

फ़ाज़िल अंसारी

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ज़मज़मा-ए-आह-ओ-फ़ुग़ाँ दूर तक
गूँजती है वादी-ए-जाँ दूर तक

हाए रे वीरानी-ए-राह-ए-हयात
कोई सदा है न निशाँ दूर तक

मिल न सका अम्न-ओ-सुकूँ का पता
ढूँड चुकी उम्र-ए-रवाँ दूर तक

शम-ए-तरब जल्वा-फ़गन आस-पास
मशअ'ल-ए-ग़म नूर-फ़िशाँ दूर तक

सिमटे हुए अम्न के पैग़ाम्बर
फैले हुए क़ातिल-ए-जाँ दूर तक

शहर में देहात में हर राह में
ख़ून की इक जू-ए-रवाँ दूर तक

पूछ न 'फ़ाज़िल' मिरी दुनिया का रंग
आग हर इक सम्त धुआँ दूर तक