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ज़मीं ने लफ़्ज़ उगाया नहीं बहुत दिन से | शाही शायरी
zamin ne lafz ugaya nahin bahut din se

ग़ज़ल

ज़मीं ने लफ़्ज़ उगाया नहीं बहुत दिन से

फ़रहत एहसास

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ज़मीं ने लफ़्ज़ उगाया नहीं बहुत दिन से
कुछ आसमाँ से भी आया नहीं बहुत दिन से

ये शहर वो है कि कोई ख़ुशी तो क्या देता
किसी ने दिल भी दुखाया नहीं बहुत दिन से

अजीब लोग हैं बस रास्तों में मिलते हैं
किसी ने घर ही बुलाया नहीं बहुत दिन से

तुझे भुलाना तो मुमकिन नहीं मगर यूँही
तिरा ख़याल ही आया नहीं बहुत दिन से

नमाज़ कैसे पढ़ूँ मैं बग़ैर पाक हुए
कि आँसुओं में नहाया नहीं बहुत दिन से

हम अपनी ममलिकत-ए-दर्द में अकेले हैं
हमारी कोई रेआ'या नहीं बहुत दिन से

मुफ़ाहमत सी अजब हो गई है रात के साथ
चराग़ मैं ने जलाया नहीं बहुत दिन से