ज़माने-भर में कोई भी वफ़ा-सिपास नहीं
ख़ुदा-शनास बहुत हैं अदा-शनास नहीं
मिरी नज़र का हर अंदाज़ है जमाल-आगीं
मिरे जुनूँ का कोई मरहला उदास नहीं
मिरे ख़याल की रंगीनियाँ हैं ला-महदूद
ये क़ैद-ओ-बंद शब-ओ-रोज़ मुझ को रास नहीं
कुछ इस अदा से मैं खोया गया मोहब्बत में
ज़माना बीत गया है बजा हवास नहीं
दर-ए-जमाल पे मज़हर सुजूद क्या मा'नी
वक़ार-ए-इश्क़ शनासा-ए-इल्तिमास नहीं

ग़ज़ल
ज़माने-भर में कोई भी वफ़ा-सिपास नहीं
सय्यद मज़हर गिलानी