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ज़माने-भर में कोई भी वफ़ा-सिपास नहीं | शाही शायरी
zamane-bhar mein koi bhi wafa-sipas nahin

ग़ज़ल

ज़माने-भर में कोई भी वफ़ा-सिपास नहीं

सय्यद मज़हर गिलानी

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ज़माने-भर में कोई भी वफ़ा-सिपास नहीं
ख़ुदा-शनास बहुत हैं अदा-शनास नहीं

मिरी नज़र का हर अंदाज़ है जमाल-आगीं
मिरे जुनूँ का कोई मरहला उदास नहीं

मिरे ख़याल की रंगीनियाँ हैं ला-महदूद
ये क़ैद-ओ-बंद शब-ओ-रोज़ मुझ को रास नहीं

कुछ इस अदा से मैं खोया गया मोहब्बत में
ज़माना बीत गया है बजा हवास नहीं

दर-ए-जमाल पे मज़हर सुजूद क्या मा'नी
वक़ार-ए-इश्क़ शनासा-ए-इल्तिमास नहीं