EN اردو
ज़ख़्म मेरे दिल पे इक ऐसा लगा | शाही शायरी
zaKHm mere dil pe ek aisa laga

ग़ज़ल

ज़ख़्म मेरे दिल पे इक ऐसा लगा

यासीन अफ़ज़ाल

;

ज़ख़्म मेरे दिल पे इक ऐसा लगा
अपनी जाँ का रूह को धड़का लगा

उस का चेहरा भी जो औरों सा लगा
आसमाँ पे चाँद मिट्टी का लगा

देखता क्या क्या कनार-ए-आबजू
ख़ुद मैं अपने आप को उल्टा लगा

ख़ुद-नुमाई के भरे इक शहर में
अपने क़द से हर कोई ऊँचा लगा

रौशनी दिल की अचानक गुल हुई
ख़ुद को थोड़ी देर में अंधा लगा

साए में उस के तलब की धूप थी
धूप में वो नीम का साया लगा

ज़िंदगी से हाथ हम ने धो लिए
वक़्त इक बहता हुआ दरिया लगा