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ज़ख़्म दिल का ख़ूँ-चकाँ ऐसा न था | शाही शायरी
zaKHm dil ka KHun-chakan aisa na tha

ग़ज़ल

ज़ख़्म दिल का ख़ूँ-चकाँ ऐसा न था

अलक़मा शिबली

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ज़ख़्म दिल का ख़ूँ-चकाँ ऐसा न था
अब से पहले जाँ-सिताँ ऐसा न था

लर्ज़ा-बर-अंदाम है क़स्र-ए-यक़ीं
आदमी सैद-ए-गुमाँ ऐसा न था

फुलझड़ी सी छूटती थी रात-दिन
शहर-ए-जाँ तीरा-निशाँ ऐसा न था

फूल जो थे आरज़ू के जल गए
शो'ला शो'ला गुलिस्ताँ ऐसा न था

ज़ीस्त की रह में बलाएँ थीं मगर
मेरे सर पर आसमाँ ऐसा न था

शाख़-ए-गुल थी तितलियों के पर भी थे
गुलशन-ए-दिल बे-अमाँ ऐसा न था