ज़ख़्म दिल का ख़ूँ-चकाँ ऐसा न था
अब से पहले जाँ-सिताँ ऐसा न था
लर्ज़ा-बर-अंदाम है क़स्र-ए-यक़ीं
आदमी सैद-ए-गुमाँ ऐसा न था
फुलझड़ी सी छूटती थी रात-दिन
शहर-ए-जाँ तीरा-निशाँ ऐसा न था
फूल जो थे आरज़ू के जल गए
शो'ला शो'ला गुलिस्ताँ ऐसा न था
ज़ीस्त की रह में बलाएँ थीं मगर
मेरे सर पर आसमाँ ऐसा न था
शाख़-ए-गुल थी तितलियों के पर भी थे
गुलशन-ए-दिल बे-अमाँ ऐसा न था
ग़ज़ल
ज़ख़्म दिल का ख़ूँ-चकाँ ऐसा न था
अलक़मा शिबली