ज़हर पिए मदहोश अँधेरी रात
नागिन सी ख़ामोश अँधेरी रात
दिन की सूरत मुझ को भी खा जा आ कर
मैं भी हूँ बेहोश अँधेरी रात
शहरों में ख़ामोशी ही ख़ामोशी थी
तूफ़ाँ था पुर-जोश अँधेरी रात
क्या जाने किस ने ओढ़ा मेरा पैकर
मैं ख़्वाब-ए-ख़रगोश अँधेरी रात
चाँदी जैसी किरनें मुझ पर मत डालो
मेरा तो सर-पोश अँधेरी रात
नींद कहाँ मेरे घर आएगी 'बदनाम'
मैं ख़ाना-बर-दोश अँधेरी रात
ग़ज़ल
ज़हर पिए मदहोश अँधेरी रात
बदनाम नज़र