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ज़हर पिए मदहोश अँधेरी रात | शाही शायरी
zahar piye madhosh andheri raat

ग़ज़ल

ज़हर पिए मदहोश अँधेरी रात

बदनाम नज़र

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ज़हर पिए मदहोश अँधेरी रात
नागिन सी ख़ामोश अँधेरी रात

दिन की सूरत मुझ को भी खा जा आ कर
मैं भी हूँ बेहोश अँधेरी रात

शहरों में ख़ामोशी ही ख़ामोशी थी
तूफ़ाँ था पुर-जोश अँधेरी रात

क्या जाने किस ने ओढ़ा मेरा पैकर
मैं ख़्वाब-ए-ख़रगोश अँधेरी रात

चाँदी जैसी किरनें मुझ पर मत डालो
मेरा तो सर-पोश अँधेरी रात

नींद कहाँ मेरे घर आएगी 'बदनाम'
मैं ख़ाना-बर-दोश अँधेरी रात