ज़बाँ रखता हूँ लेकिन चुप खड़ा हूँ
मैं आवाज़ों के बन मैं घिर गया हूँ
मिरे घर का दरीचा पूछता है
मैं सारा दिन कहाँ फिरता रहा हूँ
मुझे मेरे सिवा सब लोग समझें
मैं अपने आप से कम बोलता हूँ
सितारों से हसद की इंतिहा है
मैं क़ब्रों पर चराग़ाँ कर रहा हूँ
सँभल कर अब हवाओं से उलझना
मैं तुझ से पेश-तर बुझने लगा हूँ
मिरी क़ुर्बत से क्यूँ ख़ाइफ़ है दुनिया
समुंदर हूँ मैं ख़ुद में गूँजता हूँ
मुझे कब तक समेटेगा वो 'मोहसिन'
मैं अंदर से बहुत टूटा हुआ हूँ
ग़ज़ल
ज़बाँ रखता हूँ लेकिन चुप खड़ा हूँ
मोहसिन नक़वी