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ज़बाँ करती है दिल की तर्जुमानी देखते जाओ | शाही शायरी
zaban karti hai dil ki tarjumani dekhte jao

ग़ज़ल

ज़बाँ करती है दिल की तर्जुमानी देखते जाओ

सूफ़ी तबस्सुम

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ज़बाँ करती है दिल की तर्जुमानी देखते जाओ
पुकार उट्ठी है मेरी बे-ज़बानी देखते जाओ

कहाँ जाते हो उल्फ़त का फ़साना छेड़ कर ठहरो
पहुंचती है कहाँ अब ये कहानी देखते जाओ

तिरी ज़ालिम मोहब्बत ने जिसे बद-नाम कर डाला
उसी मज़लूम की रुस्वा जवानी देखते जाओ

सुनाता है कोई महरूमियों की दास्ताँ सुन लो
उजड़ती है किसी की ज़िंदगानी देखते जाओ

वो जिस की दिल-नशीं नज़रों में देखी थी हँसी तुम ने
उसी के आँसुओं की ख़ूँ-फ़िशानी देखते जाओ