ज़ाहिरन शाद हूँ फ़रहाँ हूँ हमेशा की तरह
बातिनन ज़ार-ओ-परेशाँ हूँ हमेशा की तरह
दिल मिरा बर्ग-ए-ख़िज़ाँ-दीदा की मानिंद सही
मैं परस्तार-ए-बहाराँ हूँ हमेशा की तरह
मेरी आँखों में किसी ने नहीं देखे आँसू
फिर भी ये सच है कि गिर्यां हूँ हमेशा की तरह
रविश-ए-दहर से रंजीदा हूँ बेज़ार नहीं
रविश-ए-दहर पे ख़ंदाँ हूँ हमेशा की तरह
जान कर भी कि तिरा क़ुर्ब है अब ना-मुम्किन
मैं तिरे क़ुर्ब का ख़्वाहाँ हूँ हमेशा की तरह
मुझ से है उन की वही बे-रुख़ी-ओ-बे-मेहरी
मैं वही बंदा-ए-याराँ हूँ हमेशा की तरह
मेरे अन्फ़ास की लौ से नहीं महफ़िल रौशन
इक चराग़-ए-तह-ए-दामाँ हूँ हमेशा की तरह
मेरी मस्ती पे न कुछ और गुमाँ हो यारो
साज़-ए-दिल ही पे तो रक़्साँ हूँ हमेशा की तरह
सर उठाए न वतन में कहीं मज़हब का जुनूँ
इसी अंदेशे से लर्ज़ां हूँ हमेशा की तरह
मुझ को अक़दार-ए-अदब जान से बढ़ कर हैं अज़ीज़
हुर्मत-ए-फ़न का निगहबाँ हूँ हमेशा की तरह
मुज़्तरिब दीदा-ओ-दिल ज़ेहन है उलझा उलझा
हुस्न से तालिब-ए-दरमाँ हूँ हमेशा की तरह
आलिमों और अदीबों से है मिलना-जुलना
अहल-ए-दौलत से गुरेज़ाँ हूँ हमेशा की तरह
मेरे औसाफ़ से होती नहीं पहचान मिरी
अपने ऐबों से नुमायाँ हूँ हमेशा की तरह
इन्क़िलाबात के आहंग हैं मेरे नग़्मे
बर्क़ हूँ आँधी हूँ तूफ़ाँ हूँ हमेशा की तरह
हो के बेगाना-ए-आलाम ज़माना मग़्मूम
मैं ग़ज़ल-ख़्वाँ हूँ ग़ज़ल-ख़्वाँ हूँ हमेशा की तरह

ग़ज़ल
ज़ाहिरन शाद हूँ फ़रहाँ हूँ हमेशा की तरह
कृष्ण गोपाल मग़मूम