ज़ाहिर न था नहीं सही लेकिन ज़ुहूर था
कुछ क्यूँ न था जहान में कुछ तो ज़रूर था
मय को मिरे सुरूर से हासिल सुरूर था
मैं था नशे में चूर नशा मुझ में चूर था
कम-माया फ़र्द-ए-जुर्म है क्या कहिए ऐ करीम
हम से कमी हुई ये हमारा क़ुसूर था
ले जा रहे हैं दोस्त मुझे आ रहा है दोस्त
क्या मौत को भी आज ही मरना ज़रूर था
मुल्क-ए-सुख़न हर अहल-ए-सुख़न को हुआ नसीब
'नातिक़' मिरे नसीब में ये नागपुर था
ग़ज़ल
ज़ाहिर न था नहीं सही लेकिन ज़ुहूर था
नातिक़ गुलावठी